डोली अरमानों की - भाग 1 Abhishek Joshi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

डोली अरमानों की - भाग 1

एक  गाव  था  जिसका  नाम  था  ।  कैलास पुर  । 

उस  गाव  मे  एक  जंगल  पड़ता  था  । 

शाम  के  ७  बजे  के  बाद  वहा  कोई  भी  आदमी  नहीं  जाता  था  । 

 

कहते  है  शाम  के  बाद  जो  वहा  गया  । 

वो  फिर  पलट  के  कभी  नहीं  लौटा  । 

जो  गया  सो  गया  । 

 

कहते  उस  जंगल  मे  एक  सड़क  है  । 

सायद  एक  किलोमीटर  जितनी  । 

बस  उस  सड़क  का  ही  सब  खेल  है  । 

 

दिवाली  की  छूटी  हो  चुकी  वो  घर  के  लिए  रवाना  हो  गया  था । 

वो  जब  उस  जंगल  वाली  सड़क  तक  पहुचा  तो  शाम  को  ७.००  बज  चुके  थे  । 

अब  देखते  है  क्या  होता  है  । 

 

हाजी  तो  हम  बात  कर  रहे  है  पार्थ  की  । 

जो  आज  दिवाली  की  छूटी  के  लिए  गाव  आ  रहा  था  । 

वैसे  तो  उसे  इस  सड़क  के  बारे  मे  सब  कुछ पता  था  फिर  भी  क्यू  उसे  डर  नहीं  लगा  । 

सायद  शहर  से  आ  रहा  था  इसलिए  । 

पर  वो  अंदर  से  थोड़ा  सा  तो  डर  भी  रहा  था  । 

अगर  वो  डोली  सामने  आ  गई  तो । 

वो  क्या  करेगा  । 

 

वो  थोड़ा  ही  आगे  चला  था  की  । 

उसकी  नजर  अपनी  घड़ी  पे  गई  । 

७ बजकर  १०  मिनिट  हो  चुकी  थी  । 

ओर  दिन  भी  बहुत  छोटा  था  । 

क्योंकि  सर्दी  की  सरुआत  हो चुकी  थी  । 

तो  अंधेरा  भी  बहुत  घना  था  । 

 

आस - पास  कोई  दिखाई  नहीं  दे  रहा  था  । 

तभी  उसे  पीछे  से  गानों  की  आवाज  सुनाई  दी  । 

उन  दिनों  सगाई या  बारात  मे  गानों  का  रिवाज  था  । 

ये  बात  बहुत  साल  पहले  की  है  । 

 

उस  वक्त  की  जब  टू -विलर  ओर  गाड़ी  नहीं  थी  । 

उन दिनों  जान  पहुच  ने  मे  ओर  लौट  ने  मे  कई  दिनों  लग  जाते  थे  । 

उन  दिनों  बैल-गाड़ी  से  यात्रा  ए  हुवा  करती  थी  । 

 

हातो  हम  कहा  थे  । 

की  राज  को  पीछे  से  गानों  की  आवाज  सुनाई  दी  । 

उसने  पलट कर  देखा  तो  एक  डोली  थी  ओर  कई  सारे  बाराती  । 

सब  ओरतों  ने  घूँघट  पहन  रखा  था  । 

ओर  आदमीओ  को  देखकर  लग  रहा  था  की  ये  सारी  बारात  प्रेतों  की  है  । 

 

धीरे - धीरे  बारात  आगे  चलती  गई  । 

ओर  वो  ये  सब  देखकर  डरने  लगा  । 

एका - एक  सब  बाराती  पार्थ  मे  से  साये  की  तरह  गुजर  गए  । 

ये  देखकर  वो  सहम  गया  । 

पर  जब  डोली  चली  गई  । 

तो  उसने  देखा  की  उसे  वहा  कुछ  पड़ा  हुआ  दिखाई  दिया । 

वो  फट  से  नजदीक  गया  ओर  देखा तो  वहा  एक  पोटली  थी  । 

उसने  वो  हाथ  मे  उठाली  ओर  जल्दी  से  अपने  बेग  मे  रख  दिया  । 

फिर  सड़क  पार  करके  अपने  घर  चला  गया । 

 

घर  जाके  उसने  अपने  मम्मी - पापा  से  सब  बात  की  । 

बस  उस  पोटली  वाली  बात  को  कहना  भूल  गया  । 

वह  जब  अपने  कमरे  मे  गया  । 

तो  उसे  वह  याद  आया  । 

जैसे  ही  उसने  पोटली  खोली  तो  उसकी  आंखे  फटी की  फटी  रहे  गई । 

उसमे  सोने  के  गहने  थे  । 

 

आखिर  क्यू  उस  बारात ने  उसे  कुछ  नहीं  किया  । 

ओर  क्यों  उसे  वह  पोटली  मिली  । 

क्या  इन  सबके  पीछे  कोई  गहेरे  राज  जुड़े  हुए  है  । 

जानने  के  लिए  पढे - डोली  अरमानों  की - भाग - २